केदारनाथ अग्रवाल का वैशिष्ट्य | Kedarnath Agrwal Ka Vaishistya | Parimal Prakashan Contact No:-8299381926


 

केदारनाथ अग्रवाल हिन्दी साहित्य की भावभूमि पर गद्य और पद्य लेखन के म से नयी पीढ़ी की आकांक्षाओं की फसल तैयार करते हैं। यह फसल मानवतावादी के फूल खिलाती है और ये फूल आनन्ददायी फलों से परितृप्ति का बोध कराते केदारनाथ अग्रवाल अपनी कवि-छवि से हिन्दी साहित्य को जितना आलोकित कर उतना ही अपने गद्य-गठन से हिन्दी साहित्य का रूपाकार गढ़ते हैं। इनकी कविताएँ ज के विरुद्ध आघात करती हैं, तो गद्य-साहित्य सामाजिक विचार-दृष्टि को उजागर करते रचनाकार केदारनाथ अग्रवाल को उनके सम्पूर्ण साहित्य के गठन अध्ययन से समझ सकता है। इस दृष्टि से प्रस्तुत पुस्तक के अंतर्गत उनके गद्य एवं पद्य दोनों ही प्रकार रचनाओं का सम्यक् आलोचनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। केदारनाथ अग्रवाल की कविताएँ-युग की गंगा, नींद के बादल, लोक और आला फूल नहीं रंग बोलते हैं तथा गद्य-पतिया, समय-समय पर (1970), विचारबोध (198 विवेक विवेचन (1981), मित्र संवाद आदि अपनी संपूर्णता के साथ प्रस्तुत शोध-या साथ-साथ चले हैं। ये रचनायें अपनी पार्थक्यता अभिव्यक्त करते हुए जुड़ाव के विि स्तरों को भी रेखांकित करती हैं। गद्य के भाव और पद्य के भाव की भिन्नता और अभिन की परख इस शोध में प्रस्तुत किया गया है। साथ ही सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृि दृष्टियों से जातिवाद, पूँजीवाद, रूढ़िवाद पर कितना कुछ केदारनाथ अग्रवाल ने लिखा यह सबकुछ इस पुस्तक में सम्मिलित है।केदारनाथ अग्रवाल के गद्य-पद्य के अध्ययन के क्रम में कई प्रकार की प्रश्नाक समस्या रूप में उभरकर सामने आयी, यथा-केदारनाथ अग्रवाल की रचनाधर्मिता के प्रे- तत्व कौन-कौन से हैं? केदारनाथ अग्रवाल की रचनाओं का काल बहुत लंबा रहा है में इनकी रचनाएँ किन-किन 'वादों' से होकर गुजरती हैं और किनको प्रभावित करती गद्य और पद्य लेखन के बीच किन बिन्दुओं पर सामंजस्य-संतुलन स्थापित होता है? ग और पद्य लेखन में प्रतिबद्धता का स्वर समान है या भिन्न? भारतीय सामाजिक-आर्थि रूप, राजनीति, व्यंग्य, प्रकृति, नारी आदि पर केदारनाथ की दृष्टि कितनी व्यापक अ गहरी है?

केदारनाथ अग्रवाल युगद्रष्टा रचनाकार हैं। इनकी रचनाओं में मानव जीवन व्यापक भाव-संसार रूपायित हुआ है। जीवन के प्रत्येक स्पन्दन को इन्होंने बखूबी परख है। मानव-मूल्यों की अत्यंत सूक्ष्म पकड़ इनकी रचनाओं में है। साथ ही शिल्प के स्त पर ये प्रयोगधर्मी रचनाकार हैं ऐसे में इनकी सच्ची समझ विकसित करते हुए मूल भावों के अनुरूप शोध-कार्य करना और नवीन स्थापनाओं की ओर ध्यानाकर्षण वास्तविक कठिनाई रही। रचनाकार की रचनाओं का ध्वनि-विस्तार जिस रूप में आम जीवन को झंकृत करता है उसके उसी रूप की परखकर नवीन स्वर लहरियाँ गूँजायित करना ध्येय है। जितना वैविध्य इनकी रचनाओं में है उसे उसी सतरंगी रूप में रखना भी आसान नहीं।केदारनाथ अग्रवाल परिवेश की स्थितियों से निर्मित युग की गाथा लिखने वाले सशक्त हस्ताक्षर हैं। जिस प्रकार सेनानायक प्रतिपक्ष की भीड़ को चीरता हुआ अपनी शक्ति से अपना परचम लहराता है तथा युग की क्रांति को इतिहास बना देता है, उसी प्रकार केदारनाथ अग्रवाल युगीन विपरीत परिस्थितियों को भेदकर अंगद की तरह पाँव जमाये जड़ता के एक- एक चिह्न को उखाड़ फेंकने के लिये कृतसंकल्प हैं। मेरा उद्देश्य भारतीय परिप्रेक्ष्य में जड़त्व के उन सूक्ष्म कारणों की पड़ताल कर उनके उन्मूलन हेतु केदानाथ अग्रवाल की लगनेवाली शक्ति और उनके सामर्थ्य की खोज करना रहा है। रचनाकार ने जिन स्थितियों से गुजरकर धारा के विपरीत सामाजिक-राष्ट्रीय स्तर पर चेतना के नवीन पक्षों का संवहन किया है, उन सबकी खोज कर वर्तमान समाज के बीच रखने की कोशिश मेरा परम ध्येय है। केदारनाथ अग्रवाल की प्रकाशित-युग की गंगा (1947), नींद के वादल (1947), लोक और आलोक (1957), फूल नहीं रंग बोलते हैं (1965) आदि दर्जनों साहित्य में चेतना के नवीन स्वरूप झंकृत हुए हैं, जिनमें मानवतावादी, क्रांतिवादी चेतना के साथ जीवन, दर्शन, सृजन और उसके प्रभाव को प्रस्तुत किया गया है। केदारनाथ की समग्र रचनाओं का मूल्यांकन करते हुए प्रगतिशीलता के प्रति प्रतिबद्धता के जो स्वर प्रस्फुटित हुए हैं, उसे ध्वनित करने की कोशिश की गयी है। साथ ही कृषक, मजदूर, प्रकृति नारी आदि के प्रति केदारनाथ के व्यापक दृष्टिकोण को सर्वमान्य स्थापनाएँ देने की कोशिश रही है।प्रस्तुत पुस्तक विश्लेषणात्मक, तुलनात्मक एवं गवेषणात्मक इन त्रिस्तरीय पद्धतियों के सहारे अपने लक्ष्य तक की यात्रा करता है।यहाँ केदारनाथ अग्रवाल की रचनाओं के उन पक्षों को प्रस्तुत किया गया है, जिनसे मानवीय सरोकार साकार हो उठते हैं। यह साफ दिखता है कि इनकी प्रतिबद्धता हताश, निराश टुटे हुए वंचितों को ऊर्जस्वित करने की रही है। इन दृष्टि से समाज की प्रगति के बाधक जड़मूल्यों और मान्यताओं को तोड़ने वाले रचनाकार का रचना-संसार जानना वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अत्यंत प्रासंगिक होगा। साथ ही हिन्दी के पाठकों, साहित्यानुरागियों एवं शोधार्थियों के लिए यह विषय नवीन दृष्टिकोण तैयार करेगा। यह पुस्तक वस्तुतः केदारनाथ अग्रवाल की समग्रता का पुनर्मूल्यांकन होगा जिसमें उनकी साहित्यिक दृष्टि की मौलिक उद्भावनाएँ रखी गयी हैं।

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