दूधनाथ सिंह का आलोचनात्मक साहित्य | Doodhnath Singh Ka Alochnatmak Sahitya | By Parimal Prakashan Contact No:-8299381926


 


आधुनिक हिन्दी आलोचना में दूधनाथ सिंह का साहित्य नए अध्याय की शुरूआत करता है। 'दूधनाथ सिंह का आलोचनात्मक साहित्य' विषयक प्रस्तुत पुस्तक आलोचना के क्षेत्र में दूधनाथ सिंह को स्थापित करने का कार्य करेगा। आलोचक के रूप में स्वयं दूधनाथ सिंह अपनी अलग पहचान लिए विशिष्ट दिखलाई देते हैं। गद्य की लगभग सभी विधाओ को वे अपने लेखन में स्पर्श करते हैं किन्तु सम्यक् विश्लेषण किया जाय तो ये आलोचना में ज्यादा रुझान रखते हैं। इनकी आलोचना कथ्य, शिल्प एवं शैली तीनों ही स्तरों पर नवीन है। कथ्य के क्षेत्र में ये पूर्णतः तटस्थ तथा निःसंग होकर रचनाकारों को देखते हैं तो शिल्प की दृष्टि से संस्मरण के साथ आलोचना की नई परिपाटी तैयार करते हैं। इसी प्रकार संवादात्मक, उपदेशात्मक तथा विश्लेषणात्मक शैलियों का उपयोग करते हुए अपने इर्द-गिर्द के रचनाकारों की वास्तविकता उद्घाटित करते हैं। इनकी आलोचना के दायरे में प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी, मुक्तिबोध, शमशेर, अज्ञेय और भुवनेश्वर आते हैं। दूधनाथ सिंह रचित संस्मरणात्मक आलोचना पुस्तकों के अध्ययन से इन रचनाकारों को नए कोण से देखने-समझने और महसूस करने का मौका मिलता है।प्रस्तुत पुस्तक के अंतर्गत जिन मौलिक उद्भावनाओं की स्थापना हो पायी है उसमें यह दिखलाई देता है कि दूधनाथ सिंह आलोचना करने से पूर्व भौतिक सत्यापन पर बल देते हैं। संबंधित रचनाकार से प्रत्यक्षतः मिलते हैं, उनकी खूबियों और खामियों का बारीक अध्ययन-विश्लेषण करते हैं, तत्पश्चात अपनी पुस्तक में संस्मरण के माध्यम से उन रचनाकारों को रेखांकित करते हैं और इसी क्रम में आलोचना के गुरुतर दायित्व का निर्वाह भी करते हैं। बंधी-बंधाई अवधारणाओं को ध्वस्त करते हुए ये छायावादी रचनाकारों का नवीन तकनीक के साथ-मानों जैसे ड्रोन से-आकाशीय परिमापन करते हैं। आलोचक के इन प्रयत्नों से रचनाकारों की बहुकोणीय छवि प्रदर्शित हो पाती है। दूधनाथ सिंह किसी भी बनी-बनायी परिपाटी का अनुपालन न कर अपने दृष्टिकोण का सहारा लेते हैं और आलोचना के नए मानदंड गढ़ते हैं, फलतः नवीन सामाजिक सरोकार से युक्त रचनाकार तरोताजा होकर इनकी पुस्तकों में उपस्थित होता है।

मैं गुरुदेव डॉ. सुनील कुमार दुबे, सहायक प्राध्यापक, हिन्दी विभाग, विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग के प्रति कृतज्ञ हूँ जिनका बहुमूल्य परामर्श एवं सहयोग प्राप्त होता रहा है। अन्नदा महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. अजय कुमार वर्मा के प्रति भी मैं आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने समय-समय पर मेरा मार्गदर्शन भी कराते रहे हैं। स्मृतिशेष डॉ. भारत यायावर के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने इस कार्य के लिए मुझे प्रेरित किया था। डॉ. मिथलेश कुमार सिंह, डॉ. केदार सिंह, डॉ. कृष्ण कुमार गुप्ता, सुबोध सिंह एवम् डॉ. राजू राम का अमूल्य सहयोग प्राप्त हुआ है। श्री अंकुर शर्मा, परिमल प्रकाशन, प्रयागराज के प्रति विशेष आभारी हूँ जिन्होंने पुस्तक को ससमय प्रकाशित किया।

                                                                                                    (शिव कुमार मेहता)


                                 
                                            
           



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